Saturday 23 January 2016

भाई बड़ी ठंड है…....

        .......*भाई बड़ी ठंडी है*......
  यह जनवरी भी कमबख्त उस जुलाई वाली मेहबूबा की तरह हो गई है।न न कहते हुए भी अचानक आधमकि है बिल्कुल वैसे ही जैसे वह जुलाई में मुझे छोड़ कर चले जाने को कही थी और मेरी यादों के समंदर ने उसे फिर से मुझे चकनाचूर करने के लिये रोक लिया था।तब भी बेतहाशा दर्द हुआ था और अब भी कसम रांझणा वाली हीर की बड़ी कपकपी सी होती है।हाथ और पैर इतने थर्राते हैं मानो इन्हें मौका मिले तो सीधा जाके मैया सीता की तरह ही अग्नि समाधी ले लें।
      अम्मा से कहके तो खुद ही ज़बरदस्ती अपने सर्दी वाले मख्मले, मुलायम कपड़ो को उस अलमारी में रखवा दिया था जिसमे पहले से ठुसे कपड़े अपनी इंच भर की जगह से इधर उधर होने से पहले तलवार और तोपो से हमारा मुकाबला करने को तैयार बैठे हो।याद है मुझे पूरा दुई घंटा लगा रहे एडजस्टमेंट बैइठाने में।और बदले में अम्मा की सारी साड़ियां प्रेस करने का संकल्प उठा लिए रहे।अम्मा कहती रहे की बेटा अभी ठण्ड फिर से लौटेगी और तुम्हारी इ रंगबाजी खत्म कर देगी।और अब जाके कुछ दिन पहले वाली यह बात याद आ रही हैं।अब बचे हुए सर्द कपड़ो से ही गुज़ारा करना पड़ेगा क्योंकि कुल्हाड़ी पर पैर देने से पहले धार तो खुद ही तेज़ करवाई थी उसकी, तो अब चीख़ और पुकार का आनंद भी खुद ही लिया जाए।
      अब तो एक ही रास्ता दिखता है कि अगर ठंडी से बचना है तो रस्ते पर निकलना ही बन्द कर दूँ,इतनी ठिठुरन में तो लगता है जैसे कि हवाओ को भी मेरे ही बदन से प्यार हो गया है,जब देखो छेड़ती ही रहती हैं और सर्दी तो मानो उस आकाश से लेकर नीचे वाले आकाश तक को सताने का बीड़ा उठा ली है।
     हे सर्दी बहिन हमका माफ़ी दे दो और अपने इस छोटे भाई पर रहम खाके अपने ससुराल जल्दी चली जाओ चाहे तो बदले में हमार स्वेटर,जैकेट,मफलर इत्यादि भी अपने साथै लई जाओ।।।

परिचय:मैं आकाश यादव,लखनऊ यूनिवर्सिटी से MJMC का छात्र हूँ, मुझे रिपोर्टिंग के साथ साथ सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर लिखना और पढ़ना पसंद है।।

                ......Bs yuh hi......

      

Tuesday 19 January 2016

अब तक हाथ लगी केवल हताशा और मायूसी

    लगातार दो वनडे मैच गवाने के बाद धोनी एंड कंपनी पर एक बार फिर से आलोचकों द्वारा सवालो की बारिश होने लागी है।जहा दोनों ही वनडे के नतीजे एक सामान ही रहे उन्हें देख कर यह सवाल उठना वाज़िब है कि क्या पहली हार से बगैर कोई सबक लिए हुए ही टीम इंडिया अपने अगले सफ़र पर चल दी थी।सवाल तो कई सारे हैं पर धोनी के पास इन सभी आलोचनाओ का जवाब देने का बस एक ही विकल्प है और वह है जीत और सिर्फ जीत।
       यूँ तो पर्थ की पिच तेज़ गेंदबाजों के लिए मक्का मानी जाती है परंतु केवल 3 तेज़ गेंदबाजों और 2 स्पिनरो के साथ मैदान में उतरने का फैसला तो धोनी ले ही चुके थे।और ले भी क्यों ना अगर आप पिछले कुछ ट्रैक रिकॉर्ड पर ध्यान दे तो आश्विन और जडेजा की इस जोड़ी ने केवल अपने बल-बुते पर कई मैच जीत कर भारत की झोली में दाले हैं।जहा उनका यह फैसला कइयों को चौकाने वाला लगा होगा पर जो इनकी छमता को कम करके नही आंकते उनके लिए इसमें कुछ भी हैरानी भरा न था।पर जिस बात पर ध्यान आकर्षित होता है वह इन दोनों की लचर गेंदबाजी है।जहा आश्विन ने पहले मैच में 9ओवर दाल के 68 रन दिए थे वही जडेजा ने 9 ओवर में 61 रन लुटाए वो भी बगैर एक भी विकेट लिए।इससे विपक्षी टीम के बल्लेबाजों ने रन तो खूब बनाए साथ ही साथ दूसरे गेंदबाजों पर दबाओ भी बड़ा दिया।ऐसा ही कुछ हाल इन दोनों का ब्रिस्बेन में भी रहा।
      अकेले स्पिनरों को ही दोषी नही ठहराया जा सकता क्योंकि तेज़ गेंदबाजों ने भी हमारी लोटिया डुबाने में कोई कसर न छोड़ी।युवा बरिन्दर सरन को छोड़ के बाकि दोनों ही गेंदबाज,बल्लेबाजों के आगे हथियार दालते हुए दिखे।दूसरे वनडे में इन्हें एक-एक विकेट तो मिले मगर इन्होंने रन इतने लुटवा दिए की ऑस्ट्रेलियाई टीम ने एक ओवर शेष रहते ही मैच जीत लिया।
       अगर बात करे भारतीय बल्लेबाज़ी की तो इस मोर्चे पर टीम खरी उतरी है।टॉप आर्डर में शिखर धवन को छोड़ कर सभी ने बेहद ही काबिल-ए-तारीफ़ प्रदर्शन किया है।रोहित शर्मा के दो शतकों की मदत से टीम इंडिया दोनों ही वनडे में 300 का आकड़ा पार करने में कामयाब रही है।उप कप्तान विराट कोहली ने भी अपनी भूमिका बेहतर निभाई है और अब तक दो अर्धशतक जड़ने में कामयाब रहे हैं।मगर मिडिल आर्डर की बल्लेबाज़ी का प्रदर्शन संतोषजनक नही रहा है खास कर धोनी की भूमिका।उन्हें ज्यादा गेंदे खेलने का मौका नही मिला मगर आखरी 10ओवरों में अगर उनकी तरफ से एक-आधी विस्पोटक पारी देखने को मिल जाती तो 20 से 30 अतिरिक्त रन स्कोर में जुड़ जाते और शायद फिर नतीज़े हमारे पक्ष में आ सकते थे।
      फ़िलहाल टीम इंडिया के लिए केवल करो या मरो जैसी स्तिथि है।अब उन्हें हताशा और मायूसी से उभर कर अपना 100 फीसदी देने की कोशिश करनी पढ़ेगी।गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण को और बेहतर करने की भी ज़रूरत है।साथ ही साथ आखरी के 10 ओवरों में प्रत्येक बल्लेबाजों के योगदान और बेहद ही सधी हुई गेंदबाजी करते हुए विकेटों को निकालना होगा तभी जाकर इस टूर्नामेंट में टिका रहा जा सकता है।
     

Thursday 14 January 2016

आखिर हम अपने अतीत से कब सुधरेंगे ? सुरक्षा व्यवस्था किस्मत के भरोसे



       पहले गुरुदासपुर और अब पठानकोट !! एक के बाद एक पिछले 6 महीनों में हुए आतंकी हमलों ने पंजाब और साथ ही साथ पुरे भारत को हिला के रख दिया . जिस तरह से आतंकवादी संगठन अपने नापाक मंसूबों को कामयाब करने में लगे हैं उसको देख कर इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है कि वह किसी बड़ी साज़िश को अंजाम देना चाहते हैं . भारतीय सुरक्षा व्यवस्था में हो रही चूकों की वजह से उनके मंसूबों को समय रहते हुए ही ख़तम नही किया जा सकता . सोचने वाली बात यह भी है कि आखिरकार आतंकी पंजाब को ही निशाना क्यों बना रहे हैं ? क्यों सिलसिलेवार तरीके से यहाँ हमले कर रहे हैं ?
       इसका एक मतलब यह भी निकला जा सकता है कि पंजाब की पाकिस्तान के साथ ५५० किलोमीटर की बार्डर सीमा है ,जिस पर हर वक़्त निगरानी नही की जा सकती है . इसी सीमा में कई सारी नदियाँ हैं जो कि सुरक्षा एजेंसियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है . क्योंकि नदियों पर सुरक्षा व्यवस्था को पुख्ता करने के लिए आधुनिक संसाधनों की जरुरत होती है . वह संसाधन सेना के पास नहीं है . साथ ही साथ घने जंगल और ऊँची ऊँची झाड़ियाँ भी बहुत बड़ा रोड़ा सुरक्षा व्यवस्था में बनी हुई  हैं . इन सीमा पर इलेक्ट्रिक तारों की व्यवस्था भी नहीं है और जो तारें बार्डर पर बंधी हैं वह या तो टूट चुकी हैं या फिर बहुत कमजोर हो गयी हैं . इस हालत में एक ओर से दूसरी ओर आसानी से आया जा सकता है . एक बात और जिस पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है वह है इस इलाके में फैले हुआ ड्रग तस्करों का गिरोह. इनकी एक बड़ी संख्या है जिनकी आसपास के गांवों में अच्छी पकड़ है.वह आसानी से नालों और तालाबों के माध्यम से बाहर क्रॉस कर आते हैं .
      पठानकोट में हुआ हमला हमारी सुरक्षा व्यवस्था के इंतजामों की कलई खोलता है . अगर समय रहते सुरक्षा एजेंसियां मुस्तैदी से लग जातीं तो फिर शायद आतंकियों को वायुसेना के एयरबेस तक जाने से रोका जा सकता था . अब यह फिर से जरुरी हो जाता है कि हम अपनी कमियों को चिन्हित करें और यूँ ही बार-बार हमारे जवानों का रक्त ना बहता रहे . याद रखने वाली बात यह भी है कि यह वही एयरबेस था जिसने कारगिल युद्ध की जीत को सुनिश्चित किया था . इस मद्देनज़र इसे आतंकियों द्वारा उड़ाने की नाकामयाब कोशिश की गयी होगी. यूँ तो वायुसेना का एयरबेस सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद ही संवेदनशील है परन्तु जिस तरह से 6 आतंकी उसकी सुरक्षा को भेदते हुए लगभग 65 घंटे तक उस पर कब्ज़ा जमाये रहे उसे देखकर तो यही लगता है कि सारा सुरक्षा व्यवस्था केवल दिखावा मात्र ही थी  .
    ज़ख्मो पर मरहम लगाते हुए यूँ तो पाकिस्तान ने भारत द्वारा पेश किये गए सुबूतों के मद्देनज़र सख्त कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है मगर अब देखने वाली बात यह है की कहीं यह पकिस्तान के तरफ से महज़ एक दिखावा भर तो नही . क्योंकि इससे पहले भी २६/११ मुंबई हमले में वहाँ की सरकार ने मोहम्मद सईद जैसे कुख्यात आतंकी को केवल घर में नज़रबंद करके अपनी कार्यवाही की पिपड़ी बजाई थी और जिसे बाद में सुबूतों के अभाव में कोर्ट ने बरी कर दिया था . इस बात पर कई बार मुहर लग चुकी है कि पाकिस्तानी सरज़मीं पर भारत के खिलाफ आतंकी कैम्पों का आईएसआई द्वारा संचालन हो रहा है . अब यह पाकिस्तान की गंभीरता को परखने का समय है क्या वो इन कैम्पों को समाप्त करने का साहस दिखा पता है . यदि वह आतंकियों या उनके शुभचिंतकों के खिलाफ ज़मीनी कार्यवाही करता है तभी भारत को अपनी द्विपक्षीय वार्तालाप के सिलसिले को आगे बढ़ाना चाहिए अन्यथा इन संबंधों के बारे में कड़ा रुख अख्तियार करने की जरुरत है .
     

Wednesday 6 January 2016

एक समस्या , जो लेती घातक रूप



आज आतंकवाद के साथ साथ हम एक ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं , जिससे अगर समय रहते चेता नही गया तो ये एक भीषण आपदा का रूप ले सकती है और शायद फिर इसे रोकना भी नामुमकिन हो जाएगा . हाँ मैं बात कर रहा हूँ वायु प्रदुषण की . यह एक ऐसा ज़हर है जो इंसानी शरीर और जानवरों की जीवन प्रणाली में हवा के माध्यम से प्रवेश करता है और अनगिनत बीमारियों को जन्म देकर इनको अन्दर से खोखला कर देता है . शरीर के लिए एक यह एक तरह का कैंसर है . वायु प्रदुषण का अर्थ है हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड ,सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का विश्व स्वास्थय संगठन के मापदंडों से अधिक हो जाना यह हवा की गुनावत्ता को बेहद ही ख़राब और प्रदूषित कर देता है . वाहनों के परिचालन की वजह से शहरों में प्रदुषण की दर गाँव की तुलना में अधिक है . वाहनों फैक्टरियों एवं उद्योगों से निकलने वाला धुंवा शहरों की स्वच्छ हवा को प्रभावित कर रहे हैं जो की सांस लेने के लिए उचित नही है .
     पछले साल के अप्रैल महीने में प्रधानमन्त्री द्वारा ‘राष्ट्रीय एयर क्वालिटी इंडेक्स’ (AQI) प्रणाली का शुभारम्भ किया गया . जो की हवा की गुणवत्ता मापने का एक वैश्विक मानक है इसे उन शहरों में लागू किया जाएगा जिनकी जनसँख्या 10 लाख से अधिक है और शुरुआत इसकी 10 प्रमुख शहरों से की गयी थी . इन दस में उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों में आगरा, लखनऊ, कानपुर ,बनारस ,मेरठ शामिल हैं .इसके लागू होने के बाद से ही इसके नतीजे बेहद ही चौकाने वाले थे . जहां दिल्ली की आबोहवा को विश्व का सबसे प्रदूषित शहरों को होड़ में प्रथम स्थान पर पाया गया वहीं ,उत्तर प्रदेश की राजधानी एवं नवाबों का शहर लखनऊ भी पीछे ना रहा .  दिसम्बर के महीने में लखनऊ ने दिल्ली को पछाड़ते हुए देश का सबसे प्रदूषित शहर होने का खिताब अपने नाम दर्ज किया .जिसका इंडेक्स वैल्यू 471 रहा ,वहीं दिल्ली इस क्रम में चौथे नंबर पर फिसल गयी . जिसकी इंडेक्स वैल्यू 382 मापी गयी .इसमें और भी चौंकाने वाली बात यह रही कि दुसरे पायदान पर भी उत्तर प्रदेश के औद्योगिक शहर कानपुर का कब्ज़ा रहा जिसकी इंडेक्स वैल्यू 429 के करीब पाई गयी . साथ ही साथ आपको ये भी बताते चलें की इंडेक्स वैल्यू 150 से अधिक होने पर उस शहर की हवा स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होती है . अब आप आसानी से इन आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए खतरे का स्तर माप सकते हैं, कि जिस शहर में आप रह रहे हैं वहाँ की हवा आपके स्वास्थय के लिए कितनी नुकसानदायक है .
       यूँ तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर्यावरण प्रेमी हैं , जिसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पौधरोपण के लिए उनकी सरकार का नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है . पर अब मुख्यमंत्री जी को दिल्ली सरकार के नक़्शे कदम पर चलते हुए सख्त कार्यवाही करने की जरुरत है ताकि समय रहते इस समस्या से निजात पाई जा सके .वैसे दिल्ली की तुलना में उत्तर प्रदेश जनसँख्या एवं क्षेत्रफल में बहुत बड़ा है . तो यह अखिलेश की कार्यशाली की अग्नि परीक्षा होगी की वह किस तरह सम विषम जैसे किसी फार्मूले को अमलीजामा दे पाते हैं या नही . वैसे राजधानी लखनऊ में साईकिल ट्रैक का निर्माण करके मुख्यमंत्री ने पर्यावरण प्रदुषण के प्रति जागरूकता बढाने की पहल तो की है मगर जहाँ प्रदेश का  हर दूसरा शहर इस भयानक समस्या से ग्रस्त है ,ऐसे में और कई  ठोस  कदम एक बड़े पैमाने पर उठाने की उन्हें आवश्यकता है . तथा पर्यावरण संरक्षण की ओर आमजन को भी सामूहिक पहल करने की जरुरत है . तभी इस कैंसर जैसी समस्या से मुकाबला किया जा सकता है .

Wednesday 5 August 2015

कैसे एक कॉलेज का शिक्षक बना सदी का खलनायक।

Kadar khan..
          सहनायक,संवाद_लेखक,खलनायक,हास्य अभिनेता और भी कइ प्रतिभाओ क धनि... कादर खान जी के अभिनय की एक विशेषता यह है कि वह किसी भी तरह की भूमिका के लिये उपयुक्त हैं। फिल्म कुली में एक 'क्रूर खलनायक' की भूमिका हो या फिर जैसी करनी वैसी भरनी, फिल्म में भावपूर्ण अभिनय या फिर 'बाप नंबरी बेटा दस नंबरी' फ़िल्मं में हास्य अभिनय, इन सभी चरित्रों में उनका कोई जवाब नहीं है। कादर खान का जन्म 22 अक्तूबर 1937 में बलूचिस्तान (पाकिस्तान)में हुआ। कादर खान ने अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई उस्मानिया विश्वविद्यालय से पूरी की। इसके बाद उन्होंने अरबी भाषा के प्रशिक्षण के लिए एक संस्थान की स्थापना करने का निर्णय लिया।
        कादर खान ने अपने करियर की शुरुआत बतौर प्रोफेसर मुंबई के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से की। इस दौरान कादर खान कॉलेज में आयोजित नाटकों में हिस्सा लेने लगे। एक बार कॉलेज में हो रहे वार्षिक समारोह में कादर खान को अभिनय करने का मौका मिला। इस समारोह में अभिनेता दिलीप कुमार, कादर खान के अभिनय से प्रभावित हुए और उन्हें अपनी फिल्म 'सगीना' में काम करने का प्रस्ताव दे दिया। वर्ष 1974 में रिलीज फिल्म 'सगीना' के बाद कादर खान फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। इस दौरान उनकी दिल दीवाना, बेनाम, उमर कैद, अनाड़ी और बैराग जैसी फिल्में रिलीज हुईं, लेकिन इन फिल्मों से उन्हें कुछ खास फायदा नहीं पहुंचा।
          1977 में कादर खान की 'खून पसीना' और 'परवरिश' जैसी फिल्में आईं। इन फिल्मों के जरिये वह कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए। खून पसीना और परवरिश की सफलता के बाद कादर खान को कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए। इन फिल्मों में मुकद्दर का सिकंदर, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग, दो और दो पांच, कुर्बानी, याराना, बुलंदी और नसीब जैसी बड़े बजट की फिल्में शामिल थीं। इन फिल्मों की सफलता के बाद कादर खान ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और बतौर 'खलनायक' फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। वर्ष 1983 में रिलीज 'कुली' कादर खान के करियर की सुपरहिट फिल्मों में शुमार की जाती है। मनमोहन देसाई के बैनर तले बनी इस फिल्म में अमिताभ बच्चन ने मुख्य भूमिका निभाई थी। इस फिल्म के साथ कादर खान फिल्म इंडस्ट्री के चोटी के खलनायकों की फेहरिस्त में शामिल हो गए। 1990 में रिलीज 'बाप नंबरी बेटा दस नंबरी' कादर खान के सिने करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक है। इस फिल्म में कादर खान और शक्ति कपूर ने बाप और बेटे की भूमिका निभाई जो ठग बनकर दूसरों को धोखा दिया करते हैं। फिल्म में कादर खान और शक्ति कपूर ने अपने कारनामों के जरिये दर्शकों को हंसाते-हंसाते लोटपोट कर दिया। फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए कादर खान _'फिल्मफेयर पुरस्कार' से सम्मानित भी किए गए। नब्बे के दशक में कादर खान ने अपने अभिनय को एकरुपता से बचाने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में स्थापित करने के लिए अपनी भूमिकाओं में परिवर्तन भी किया। इस क्रम में वर्ष 1992 में प्रदर्शित फिल्म 'अंगार' में उन्होंने अंडरवर्ल्ड डॉन जहांगीर खान की भूमिका को रूपहले पर्दे पर साकार किया।इसके बाद कादर खान ने हास्य अभिनेता के तौर पर ज्यादा काम काम करना शुरू किया। इस क्रम में वर्ष 1998 में रिलीज फिल्म 'दुल्हे राजा' में अभिनेता गोविंदा के साथ उनकी भूमिका दर्शकों के बीच काफी पसंद की गई। कादर खान के सिने करियर में उनकी जोड़ी अभिनेता शक्ति कपूर के साथ काफी पसंद की गई। इन दोनों अभिनेताओं तकरीबन 100 फिल्मों में एक साथ काम किया है। कादर खान ने कई फिल्मों में संवाद लेखक के तौर पर भी काम किया है।
  
**एक अधूरी ख्वाहिश:                                                    
             कादर ख़ान की अमिताभ बच्चन को लेकर फ़िल्म बनाने की तमन्ना अब तक पूरी नहीं हो सकी। अभिनेता कादर ख़ान और अमिताभ बच्चन ने एक साथ कई फ़िल्में कीं।इसके अलावा कादर ख़ान ने अमर अकबर एंथनी, सत्ते पे सत्ता और शराबी जैसी फ़िल्मों के संवाद भी लिखे लेकिन कादर ख़ान अमिताभ बच्चन को लेकर खुद एक फ़िल्म बनाना चाहते थे और उनकी ये तमन्ना अब तक पूरी नहीं हो सकी।वह अमिताभ बच्चन, जया प्रदा और अमरीश पुरी को लेकर फ़िल्म ‘जाहिल’ बनाना चाहते थे। उसका निर्देशन भी वह खुद करना चाहत थे लेकिन खुदा को शायद कुछ और ही मंजूर था। इसके फौरन बाद फ़िल्म ‘कुली’ की शूटिंग के दौरान अमिताभ बच्चन को जबरदस्त चोट लग गई और फिर वो महीनों अस्पताल में भर्ती रहे।
             शायद यह बात कादर साहब खुद मानते है की बदलते वक्त के साथ अब उनका बदलना मुश्किल हो गया है।उनकी ज़िन्दगी की रफ़्तार अब उतनी तेज़ नही की वह आज के दौर के हिसाब से भाग सके।मगर इस उम्र में जब लोग दौलत और शौरत का लुफ्त उठाने के बाद रिटायरमेंट की ज़िन्दगी जीने को अग्रसर होते है तब भी अपने कादर भाई अपने बेटों के थिएटर ग्रुप और उनके प्ले में व्यस्त हैं। उनके बेटे सरफराज खान और शाहनवाज खान, अपने पिता के लिखे दो नाटकों का मंचन कर रहे हैं। इन नाटकों के नाम है मेहरबां कैसे-कैसे और लोकल ट्रेन। ये दोनों ही नाटक राजनीतिक व्यंग्य हैं।लम्बे समय से कादर खान की तबियत नाज़ुक बनी है और वह अपने बच्चों के साथ दुबई में रहते है.हैरानी तो तब हुई जब मैंने देखा की किस तरह google की इमेजेज में कदर खान जी की फ्यूनरल(funeral) images का एक पूरा अलग ही सेगमेंट बनाया हुआ है।सोच कर ही बहुत हैरानी होती  है की इतने दमदार अभिनेता के साथ इतना गन्दा मज़ाक किया जा रहा है।

       इस सब के बाद उनकी फ़िल्म बाप नंबरी बेटा दस नंबरी में कहा गया संवाद याद आता है कि_''दुःख जब हमारी कहानी सुनता है तो खुद ही दुःख को दुःख होता है।।''

#bs_yuh_hi