Tuesday 19 January 2016

अब तक हाथ लगी केवल हताशा और मायूसी

    लगातार दो वनडे मैच गवाने के बाद धोनी एंड कंपनी पर एक बार फिर से आलोचकों द्वारा सवालो की बारिश होने लागी है।जहा दोनों ही वनडे के नतीजे एक सामान ही रहे उन्हें देख कर यह सवाल उठना वाज़िब है कि क्या पहली हार से बगैर कोई सबक लिए हुए ही टीम इंडिया अपने अगले सफ़र पर चल दी थी।सवाल तो कई सारे हैं पर धोनी के पास इन सभी आलोचनाओ का जवाब देने का बस एक ही विकल्प है और वह है जीत और सिर्फ जीत।
       यूँ तो पर्थ की पिच तेज़ गेंदबाजों के लिए मक्का मानी जाती है परंतु केवल 3 तेज़ गेंदबाजों और 2 स्पिनरो के साथ मैदान में उतरने का फैसला तो धोनी ले ही चुके थे।और ले भी क्यों ना अगर आप पिछले कुछ ट्रैक रिकॉर्ड पर ध्यान दे तो आश्विन और जडेजा की इस जोड़ी ने केवल अपने बल-बुते पर कई मैच जीत कर भारत की झोली में दाले हैं।जहा उनका यह फैसला कइयों को चौकाने वाला लगा होगा पर जो इनकी छमता को कम करके नही आंकते उनके लिए इसमें कुछ भी हैरानी भरा न था।पर जिस बात पर ध्यान आकर्षित होता है वह इन दोनों की लचर गेंदबाजी है।जहा आश्विन ने पहले मैच में 9ओवर दाल के 68 रन दिए थे वही जडेजा ने 9 ओवर में 61 रन लुटाए वो भी बगैर एक भी विकेट लिए।इससे विपक्षी टीम के बल्लेबाजों ने रन तो खूब बनाए साथ ही साथ दूसरे गेंदबाजों पर दबाओ भी बड़ा दिया।ऐसा ही कुछ हाल इन दोनों का ब्रिस्बेन में भी रहा।
      अकेले स्पिनरों को ही दोषी नही ठहराया जा सकता क्योंकि तेज़ गेंदबाजों ने भी हमारी लोटिया डुबाने में कोई कसर न छोड़ी।युवा बरिन्दर सरन को छोड़ के बाकि दोनों ही गेंदबाज,बल्लेबाजों के आगे हथियार दालते हुए दिखे।दूसरे वनडे में इन्हें एक-एक विकेट तो मिले मगर इन्होंने रन इतने लुटवा दिए की ऑस्ट्रेलियाई टीम ने एक ओवर शेष रहते ही मैच जीत लिया।
       अगर बात करे भारतीय बल्लेबाज़ी की तो इस मोर्चे पर टीम खरी उतरी है।टॉप आर्डर में शिखर धवन को छोड़ कर सभी ने बेहद ही काबिल-ए-तारीफ़ प्रदर्शन किया है।रोहित शर्मा के दो शतकों की मदत से टीम इंडिया दोनों ही वनडे में 300 का आकड़ा पार करने में कामयाब रही है।उप कप्तान विराट कोहली ने भी अपनी भूमिका बेहतर निभाई है और अब तक दो अर्धशतक जड़ने में कामयाब रहे हैं।मगर मिडिल आर्डर की बल्लेबाज़ी का प्रदर्शन संतोषजनक नही रहा है खास कर धोनी की भूमिका।उन्हें ज्यादा गेंदे खेलने का मौका नही मिला मगर आखरी 10ओवरों में अगर उनकी तरफ से एक-आधी विस्पोटक पारी देखने को मिल जाती तो 20 से 30 अतिरिक्त रन स्कोर में जुड़ जाते और शायद फिर नतीज़े हमारे पक्ष में आ सकते थे।
      फ़िलहाल टीम इंडिया के लिए केवल करो या मरो जैसी स्तिथि है।अब उन्हें हताशा और मायूसी से उभर कर अपना 100 फीसदी देने की कोशिश करनी पढ़ेगी।गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण को और बेहतर करने की भी ज़रूरत है।साथ ही साथ आखरी के 10 ओवरों में प्रत्येक बल्लेबाजों के योगदान और बेहद ही सधी हुई गेंदबाजी करते हुए विकेटों को निकालना होगा तभी जाकर इस टूर्नामेंट में टिका रहा जा सकता है।
     

No comments:

Post a Comment